Monday, May 22, 2017

रमेशराज की चतुष्पदियाँ





रमेशराज की चतुष्पदियाँ 
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नेता बाँट रहे हैं नोट
सोच-समझ कर देना वोट
कल मारेंगे तुझको लात
आज रहे जो पांवों लोट |
+रमेशराज

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पी पऊआ, नाली में लोट
दे बेटा गुंडों को वोट,
यही चरेंगे गद्दी बैठ
तेरे हिस्से के अखरोट |
+रमेशराज  

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भारत माता भारत माता भारत माता की जै रे
कमरतोड़ महगाई से तू थोड़ी-सी राहत दै रे ,
सँग भारत माता के तेरी भी जय-जय हम बोलेंगे
लालाजी नहीं अरे जनता की सुख से झोली भरी दै रे |
+रमेशराज    
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+हमको सत्ता-धर्म निभाना अच्छा लगता है
आज अदीबों को गरियाना अच्छा लगता है,
कहने को हम कवि की दम हैं बाल्मीकि के वंशज पर
कवि-कुल को गद्दार बताना अच्छा लगता है |
+रमेशराज
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+सच्चे को मक्कार बताने का अब मौसम है
गर्दन को तलवार बताने का अब मौसम है ,
जनता की रक्षा को आतुर अरे जटायू सुन
तुझको भी गद्दार बताने का अब मौसम है |
+रमेशराज
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+गिरगिट जैसे रन्ग बदलने का अब मौसम है
सच के मुँह पर कालिख मलने का अब मौसम है,
पुरस्कार लौटाकर तू गद्दार कहाएगा
बाजारू सिक्कों में ढलने का अब मौसम है |

+रमेशराज
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
mo.-9634551630   



रमेशराज की चतुष्पदियाँ




रमेशराज की चतुष्पदियाँ
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गुलशन पै बहस नहीं करता
मधुवन पै बहस नहीं करता
वो लिए सियासी दुर्गंधें
चन्दन पै बहस नहीं करता |
+रमेशराज 
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“असुर ” कहो या बोलो-“ खल हैं “
हम मल होकर भी निर्मल हैं |
साथ तुम्हारे ‘ सच ‘ होगा पर-
अपने साथ न्यूज-चैनल हैं ||
+रमेशराज
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जटा रखाकर आया है, नवतिलक लगाकर आया है
मालाएं-पीले वस्त्र पहन, तन भस्म सजाकर आया है
जग के बीच जटायू सुन फिर से होगा भारी क्रन्दन  
सीता के सम्मुख फिर रावण झोली फैलाकर आया है |
+रमेशराज
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गाली देते प्रातः देखे, संध्याएँ पत्थरबाज़ मिलीं
ईसा-सी, गौतम-गाँधी-सी संज्ञाएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
कटुवचन-भरा, विषवमन भरा भाषा के भीतर प्रेम मिला
अब सारी चैन-अमन वाली कविताएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
+रमेशराज     
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हम शीश झुकाना भूल गये
सम्मान जताना भूल गये,
तेज़ाब डालते नारी पर
अब प्यार निभाना भूल गये |
+रमेशराज 
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ये टाट हमेशा हारेंगे चादर-कालीनें जीतेंगे
तू सबको रोज नचाएगा तेरी ये बीनें जीतेंगी |
तू सबसे बड़ा खिलाड़ी है इस भ्रम में प्यारे मत जीना
ये सफल हमेशा चाल न हो , मत सोच मशीनें जीतेंगी ||
+रमेशराज
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बस यही फैसला अच्छा है
मद-मर्दन खल का अच्छा है |
जो इज्जत लूटे नारी की
फांसी पर लटका अच्छा है ||
+रमेशराज
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सब हिस्से के इतवार गये
त्यौहार गये सुख-सार गये,
हम मोहरे बने सियासत के 
वे जीत गये हम हार गये
+रमेशराज 
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मिलता नहीं पेट-भर भोजन अब आधी आबादी को
नयी गुलामी जकड़ रही है जन-जन की आज़ादी को |
भारत की जनता की चीख़ें इन्हें सुनायी कम देतीं
हिन्दुस्तानी चैनल सारे ढूंढ रहे बगदादी को ||
+रमेशराज
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पेड़ों से बौर छीन लेगा
खुशियों का दौर छीन लेगा |
हम यूं ही गर खामोश रहे
वो मुँह का कौर छीन लेगा ||
+रमेशराज 
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केसरिया बौछार मुबारक
होली का त्यौहार मुबारक |
जो न लड़ा जनता की खातिर
उस विपक्ष को हार मुबारक ||
+रमेशराज
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रमेशराज , 15 / 109, ईसानगर, अलीगढ़